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अजी॑जनो॒ हि प॑वमान॒ सूर्य्यं॑ वि॒धारे॒ शक्म॑ना॒ पयः॑। गोजी॑रया॒ रꣳह॑माणः॒ पुर॑न्ध्या ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अजी॑जनः। हि। प॒व॒मा॒न। सूर्य॑म्। वि॒ऽधार॒ इति॑ वि॒ऽधारे॑। शक्म॑ना। पयः॑। गोजी॑र॒येति॒ गोऽजी॑रया। रꣳह॑माणः। पुर॒न्ध्येति॒ पुर॑म्ऽध्या ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर सूर्यरूप अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पवमान) पवित्र करने हारे अग्नि के समान पवित्र जन ! तू अग्नि (पुरन्ध्या) जिस क्रिया से नगरी को धारण करता, उससे (रंहमाणः) जाता हुआ (सूर्यम्) सूर्य को (अजीजनः) प्रगट करता, उसको और (शक्मना) कर्म वा (गोजीरया) गौ आदि पशुओं की जीवनक्रिया से (पयः) जल को मैं (विधारे) विशेष करके धारण करता (हि) ही हूँ ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो बिजुली सूर्य्य का कारण न होती तो सूर्य की उत्पत्ति कैसे होती? जो सूर्य न हो तो भूगोल का धारण और वर्षा से गो आदि पशुओं का जीवन कैसे हो? ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः सूर्यरूपोऽग्निः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(अजीजनः) जनयति (हि) खलु (पवमान) पवित्रकारक (सूर्यम्) सवितृमण्डलम् (विधारे) धारयामि (शक्मना) कर्मणा। शक्मेति कर्मनाम ॥ (निघं०२.१) (पयः) उदकम् (गोजीरया) गवां जीरया जीवनक्रियया (रंहमाणः) गच्छन् (पुरन्ध्या) यया पुरं दधाति तया ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पवमानाग्निवत् पवित्र जन ! योऽग्निः पुरन्ध्या रंहमाणः सूर्यमजीजनस्तं शक्मना गोजीरया पयश्चाऽहं विधारे हि ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - यदि विद्युत्सूर्यस्य कारणं न स्यात्तर्हि सूर्योत्पत्तिः कथं स्याद्? यदि सूर्यो न स्यात्तर्हि भूगोलधृतिर्वृष्ट्या गवादिपशुजीवनं च कथं स्यात्? ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्युत हे सूर्याचे कारण नसते तर सूर्याची उत्पत्ती कशी झाली असती? जर सूर्य नसता तर भूगोलाची धारणा व वृष्टी कशी होऊ शकली असती? आणि गाई वगैरे पशूंचे अस्तित्त्व कसे टिकले असते?